वट वृक्ष में होता है इन देवताओं का वास
पुराणों के मुताबिक मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु और डालियों में भोलेबाबा शिवशंकर का वास होता है, इस लिए इस वृक्ष की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं जल्द-शीघ्र पूर्ण हो जाती हैं | शास्त्रियों ने बताया कि अग्नि पुराण बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है इसलिए संतान प्राप्ति की इच्छुक महिलाएं भी इस व्रत को करती है, अपनी विशेषताओं और लंबे जीवनकाल के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना गया हैं |
हमारे जीवन से किस तरह जुड़ा है वट वृक्ष
वट वृक्ष की छाव में ही देवी सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था, इसी मान्यता के आधार पर स्त्रियां अखंड सुहाग की प्राप्ति के लिए इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं | अगर देखा जाये तो इस पर्व के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी मिलता है, वृक्ष होंगे तो ही जीवन बचेगा और तभी पृथ्वी पर जीवन संभव होगा |
सत्यवान-सावित्री संग यमराज की पूजा का है विधान
शास्त्र के अनुसार वट सावित्री व्रत के दिन बांस की टोकरी में सप्तधान्य के ऊपर ब्रह्मा और ब्रह्मसावित्री तथा दूसरी टोकरी में सत्यवान एंव सावित्री की तश्वीर या प्रतिमा स्थापित कर बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने का विधान हैं | इसी दिन साथ में यमराज का भी पूजन किया जाता है, इस पूजा के लिए लाल वस्त्र, सिंदूर, पुष्प,अक्षत, रोली, भीगे चने, फल और मिठाई लेकर पूजन करें | आप कच्चे दूध और जल से वृक्षों की जड़ों को सींचकर वृक्ष के तने में सात बार कच्चा सूत या मोली लपेटकर यथाशक्ति की परिक्रमा करें, इस पूजा के बाद भक्तिपूर्वक सत्यवान-सावित्री की कथा का श्रवण और वाचन करना चाहिए | ऐसा करने से आपके परिवार पर आने वाली अदृशय बाधाएं दूर हो जाती है और घर में सुख-समृद्धि का वास रहता हैं |
पूजा में जरुर चढ़ाए भीगे चने
इस महा व्रत की पूजा में भीगे हुए चने अर्पण करने का बहुत महत्व होता है क्योंकि यमराज ने चने के रुप में ही सत्यवान के प्राण सावित्री को दिए थे | इसके बाद सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास गई और उस चने को सत्यवान के मुख में रख दिया, इससे सत्यवान पुनः जीवित हो गए थे |
वट सावित्री व्रत की कथा
भविष्य पुराण वह शास्त्रों के अनुसार सावित्री राजा अश्वपति की पुत्री थी, सावित्री ने सत्यवान को पति के रुप में स्वीकार किया था | सावित्री अपने अंधे सास और ससुर की सेवा करने के उपरांत वे भी सत्यवान के साथ लकड़ियां लेने जंगल जाती थी, एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते वक्त चक्कर आ गया था और वे पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गए थे | उसी समय अपने वाहन पर सवार होकर सत्यवान के प्राण लेने आये, सावित्री ने उन्हें पहचाना और कहा- "आप मेरे पति के प्राण न लें"|
जब यमराज ने हर लिए सत्यवान के प्राण
लेकिन यमराज ने सावित्री की बात नहीं मानी और उन्होंने सत्यवान के शरीर प्राण खींच लिए, सत्यवान के प्राणों को लेकर वे यमलोक चल पड़े और उनके साथ सावित्री भी उनके पीछे चल पड़ी | इसके बाद बहुत दूर जाने के बाद यमराज ने सावित्री से कहा- "पतिव्रते! अब तुम लौट जाओ, इस मार्ग में इतनी दूर कोई नहीं आ सकता"| सावित्री ने कहा- "महाराज पति के साथ आते हुए न तो मुझे कोई ग्लानि हो रही है और न ही कोई श्रम हो रहा है मैं सुखपूर्वक चल रही हूं |
तब यम ने दिया यह बड़ा वरदान
सावित्री के पति धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वर के रुप में अंधे सास-ससुर को आंखें दी और सावित्री को सौ पुत्र होने का वरदान दिया एंव सत्यवान के प्राणों को उनके शरीर में लौटा दिया | इस प्रकार सावित्री ने अपने सतीत्व के बल पर अपने पति को मृत्यु के मुख ने निकाल लिया |